नबी करीम डबल मर्डर केस: शक, बदनामी और मौत तक का सफर 2025 !

नबी करीम डबल मर्डर केस: नई दिल्ली- देश की राजधानी दिल्ली एक बार फिर दिल दहला देने वाले डबल मर्डर केस से हिल गई।

नबी करीम डबल मर्डर केस: शक, बदनामी और मौत तक का सफर 2025 !

मामला मध्य दिल्ली के नबी करीम इलाके की चिनोट बस्ती का है, जहां 6 अप्रैल को दोपहर के वक्त अचानक हुए खूनी संघर्ष ने इलाके में सनसनी फैला दी। दो लोगों की मौके पर ही जान चली गई — जिनकी पहचान 33 वर्षीय अंकित और 32 वर्षीय राहुल के रूप में हुई है। इस दोहरे हत्याकांड के पीछे की वजह कोई गैंगवार या पैसों का विवाद नहीं, बल्कि शक, बदनामी और टूटे हुए पारिवारिक रिश्ते हैं।

CRIME EPISODE टीपू सुल्तान

क्राइम एपिसोड

नबी करीम डबल मर्डर केस: वारदात की शुरुआत एक कॉल जो सबकुछ बयां कर गई

नबी करीम डबल मर्डर केस: दिल्ली पुलिस के अनुसार, आरोपी पुनीत की गिरफ्तारी के बाद सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया कि अंकित की हत्या करने के तुरंत बाद पुनीत ने जो पहली कॉल की, वह किसी साथी या वकील को नहीं, बल्कि अपनी पत्नी को की। कॉल पर उसने ठंडे मन से कहा – “कर दी तेरे प्रेमी की हत्या।” यह एक पति की टूटी भावनाओं और जलन का खौफनाक रूप था, जो अंततः हत्या तक जा पहुंचा।

पुनीत और अंकित की दुश्मनी: प्रेम प्रसंग की उलझन में उलझी जिंदगी

पुलिस की पूछताछ में सामने आया कि पुनीत शादीशुदा है और उसकी दो बेटियां हैं। एक साल पहले उसकी पत्नी ने उसे छोड़ दिया था और दोनों बेटियों को लेकर अलग रहने लगी थी। पुनीत का दावा है कि उसकी पत्नी का अंकित के साथ प्रेम संबंध था। इसी वजह से वह न केवल रिश्तों में टूट चुका था, बल्कि मानसिक रूप से भी तनाव में था। उसने कई बार पत्नी को अंकित से दूरी बनाने को कहा था, लेकिन जब बात नहीं बनी तो उसने अंकित को रास्ते से हटाने की ठान ली।

अंकित भी शादीशुदा था। दोनों परिवार एक ही इलाके में रहते थे, जिससे बात फैलने लगी और इलाके में बदनामी होने लगी। यही बदनामी पुनीत के लिए असहनीय हो गई और उसने अपराध की ओर कदम बढ़ा दिया।

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खून की होली: कैसे हुई वारदात

शनिवार 6 अप्रैल की दोपहर लगभग 2 बजे पुनीत अपने साथी राहुल के साथ अंकित के घर के पास पहुंचा। राहुल इलाके का घोषित बदमाश था और पुनीत का पुराना जानकार भी था। पुनीत ने अंकित को बातचीत के बहाने बाहर बुलाया और जैसे ही वह सामने आया, पुनीत ने चाकू से ताबड़तोड़ हमला कर दिया।

यहां तक कि राहुल ने अंकित को पकड़ लिया ताकि वह भाग न सके। खुद को बचाने की कोशिश में अंकित ने भी पास रखा चाकू निकाल लिया और राहुल पर हमला कर दिया। इस संघर्ष में राहुल की भी मौत हो गई, जबकि पुनीत मौके से फरार हो गया।

इलाके में मची अफरा-तफरी पुलिस की सक्रियता से हुआ खुलासा

जैसे ही दोपहर को वारदात की खबर फैली, इलाके में सनसनी फैल गई। स्थानीय लोगों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने दोनों घायल युवकों को अस्पताल पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। मृतकों की पहचान होते ही पुलिस ने जब जांच शुरू की तो सबसे पहले पुनीत का नाम सामने आया।

मोबाइल लोकेशन और कॉल डिटेल की जांच में पता चला कि हत्या के बाद पुनीत ने अपनी पत्नी को फोन किया था। यही कॉल इस हत्याकांड की चाबी बन गई और पुलिस ने पुनीत को ट्रैक कर शनिवार देर शाम गिरफ्तार कर लिया।

आरोपी की मानसिक स्थिति: शक ने छीन ली इंसानियत

पूछताछ में पुनीत ने अपनी मानसिक स्थिति का जो हाल बताया, वह किसी भी सामान्य इंसान को झकझोर कर रख दे। उसका कहना था कि वह पिछले एक साल से लगातार मानसिक तनाव में था। पत्नी से अलगाव, बेटियों की जुदाई, समाज की नजरों में गिरना — इन सभी कारणों ने उसे अंदर ही अंदर खोखला कर दिया था।

अपराध के बाद भी उसे किसी तरह का पछतावा नहीं था। उसका कहना था कि, “अब जो होना था, वो हो गया। कम से कम बदनामी से तो छुटकारा मिला।” यह बयान उसकी मानसिक जटिलता और सामाजिक दबाव की भयावहता को दर्शाता है।

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राहुल की भूमिका: एक दोस्त या सहअपराधी?

इस मामले में राहुल की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। पुलिस ने बताया कि राहुल इलाके का घोषित बदमाश था और पुनीत का साथी भी। यह साफ नहीं हो पाया कि वह पुनीत की मदद करने स्वेच्छा से आया था या उसे असली इरादा नहीं बताया गया था। फिलहाल राहुल की मौत के बाद मामले में केवल पुनीत के खिलाफ हत्या का केस दर्ज किया गया है, लेकिन पुलिस राहुल की पृष्ठभूमि और इरादों की भी जांच कर रही है।

क्या कानून व्यवस्था के लिए एक चेतावनी है यह मामला?

इस दोहरे हत्याकांड ने एक बार फिर दिल्ली की कानून व्यवस्था और समाज में बढ़ते तनाव की पोल खोल दी है। यह मामला महज एक प्रेम प्रसंग या शक का नहीं, बल्कि सामाजिक बदनामी, मानसिक तनाव और असफल पारिवारिक रिश्तों की वजह से उपजे हिंसक प्रवृत्ति का उदाहरण है।

यह घटना हमें याद दिलाती है कि मन का इलाज भी उतना ही जरूरी है जितना शरीर का। समय रहते अगर पुनीत की काउंसलिंग होती, तो शायद आज दो जिंदगियां बच सकती थीं।

पुलिस की भूमिका: तेजी से कार्रवाई लेकिन सवाल बाकी

दिल्ली पुलिस की तत्परता से आरोपी की गिरफ्तारी जरूर हुई, लेकिन यह सवाल भी उठा है कि इलाके में दो परिवारों के बीच महीनों से तनाव चल रहा था, फिर भी किसी ने पहले हस्तक्षेप क्यों नहीं किया? सामाजिक संस्थाएं, मोहल्ला कमिटी या स्थानीय पुलिस इन संकेतों को क्यों नहीं पहचान सकीं?

समाज के लिए सीख: रिश्तों की दरारें नजरअंदाज न करें

इस मामले से समाज को भी सीख लेने की जरूरत है। अक्सर हम पारिवारिक विवादों को ‘घर की बात’ मानकर नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन जब ये झगड़े सार्वजनिक अपमान, मानसिक अवसाद और अंततः अपराध का रूप ले लेते हैं, तब नुकसान अपूरणीय होता है। हमें अपने आसपास के रिश्तों और व्यवहार पर ध्यान देने की जरूरत है। संवाद, काउंसलिंग और मदद की पहल ऐसे अपराधों को रोक सकती है।

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कानून का डर कम मानसिक तनाव ज्यादा

नबी करीम डबल मर्डर केस न सिर्फ एक खौफनाक वारदात है, बल्कि यह समाज के कई स्तरों पर गंभीर सवाल खड़े करता है। एक टूटता हुआ रिश्ता, समाज में गिरती इज्जत, मानसिक तनाव और कानून का डर न होना — इन सबने मिलकर दो घर बर्बाद कर दिए और दो जिंदगियां खत्म कर दीं।

पुलिस की जांच जारी है, लेकिन समाज को भी खुद से यह सवाल करना होगा कि क्या हम ऐसे संकेतों को समय रहते पहचान पा रहे हैं? क्योंकि अगली बार यह घटना किसी और की नहीं, हमारे ही आसपास की हो सकती है।

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