पुलिस रिमांड क्या है? भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में “पुलिस रिमांड” एक ऐसा महत्वपूर्ण चरण होता है जब किसी आरोपी को पुलिस हिरासत में लिया जाता है ताकि उससे पूछताछ कर, सबूत जुटाए जा सकें।

आम जनता के मन में यह सवाल अक्सर उठता है कि पुलिस रिमांड कब ली जाती है, इसका आधार क्या होता है, और आरोपी के क्या अधिकार होते हैं। यह खबर आपको इसी विषय पर पूरी जानकारी देती है — जो पत्रकारों, छात्रों, वकीलों और आम नागरिकों के लिए उपयोगी है।
टीपू सुल्तान
क्राइम एपिसोड
पुलिस रिमांड क्या है? और क्या होता है पुलिस रिमांड में ?
पुलिस रिमांड का मतलब है पुलिस हिरासत, जिसमें आरोपी को अदालत की अनुमति से कुछ दिनों के लिए पुलिस को सौंपा जाता है ताकि वह मामले में आगे पूछताछ कर सके। यह रिमांड न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा तय की जाती है और इसकी अवधि सीमित होती है।
पुलिस रिमांड का कानूनी आधार
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 167 के तहत यह प्रावधान किया गया है कि:
जब कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया जाता है और 24 घंटे के अंदर जांच पूरी नहीं हो पाती, तो पुलिस आरोपी को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करती है।
यदि मजिस्ट्रेट को यह लगता है कि मामला गंभीर है और जांच पूरी करने के लिए पुलिस को समय चाहिए, तो वह पुलिस रिमांड या न्यायिक हिरासत की अनुमति दे सकता है।
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कब ली जाती है पुलिस रिमांड?
पुलिस रिमांड तभी ली जाती है जब:
अपराध जघन्य हो — जैसे हत्या, डकैती, बलात्कार, आतंकवाद, संगठित अपराध आदि।
अभियुक्त के पास से सबूत प्राप्त करने हों — जैसे हथियार, चोरी का माल, नकदी, मोबाइल, दस्तावेज़ आदि।
अन्य आरोपियों तक पहुंचना हो — यानी आरोपी से पूछताछ कर गैंग, नेटवर्क या मास्टरमाइंड तक पहुँचना।
फरार आरोपी की तलाश करनी हो — आरोपी के माध्यम से अन्य फरार अभियुक्तों का पता लगाना।
जुर्म कबूल कराना हो — हालांकि कानूनी रूप से पुलिस के सामने दिए गए बयान अदालत में सबूत के तौर पर मान्य नहीं होते, लेकिन सुराग के लिए जरूरी हो सकते हैं।
कितने दिनों के लिए मिलती है पुलिस रिमांड?
सामान्य अपराध (जिनमें 10 साल से कम सजा है) — अधिकतम 15 दिन की हिरासत दी जा सकती है, जिसमें पुलिस रिमांड कुछ दिन और बाकी न्यायिक हिरासत हो सकती है।
गंभीर अपराध (10 साल या उससे अधिक की सजा वाले) — अधिकतम 90 दिन (मगर इसमें पुलिस हिरासत सीमित होती है, बाकी समय न्यायिक हिरासत में होता है)।
विशेष कानून (जैसे UAPA, NDPS) — 180 दिन तक भी जांच पूरी करने की अनुमति मिल सकती है।
ध्यान दें: पुलिस रिमांड 24 घंटे से अधिक तभी हो सकती है जब मजिस्ट्रेट इसकी अनुमति दे।
कौन देता है रिमांड की अनुमति?
रिमांड केवल मजिस्ट्रेट (Judicial Magistrate) द्वारा ही दी जा सकती है।
मजिस्ट्रेट पुलिस की अर्जी सुनने के बाद यह तय करता है कि पुलिस को हिरासत देने की आवश्यकता है या नहीं।
यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि पुलिस बिना ठोस आधार के रिमांड मांग रही है, तो वह अनुरोध खारिज भी कर सकता है।
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आरोपी के अधिकार पुलिस रिमांड में
वकील रखने का अधिकार — आरोपी को वकील लेने का हक होता है, जो मजिस्ट्रेट के सामने उसकी ओर से दलील दे सकता है।
मजिस्ट्रेट से अकेले में बात करने का अधिकार — आरोपी यदि चाहे तो मजिस्ट्रेट से बिना पुलिस की मौजूदगी में बात कर सकता है।
24 घंटे में मेडिकल परीक्षण — आरोपी को हर 24 घंटे में एक बार चिकित्सीय जांच के लिए पेश किया जाना चाहिए।
टॉर्चर से सुरक्षा — पुलिस रिमांड के दौरान आरोपी को प्रताड़ित करना कानूनन अपराध है। अगर कोई यातना होती है, तो उसके खिलाफ FIR दर्ज कराई जा सकती है।
बयान मजिस्ट्रेट के सामने ही दर्ज हो सकता है — पुलिस द्वारा लिया गया कबूलनामा कोर्ट में मान्य नहीं होता जब तक वह मजिस्ट्रेट के सामने न दिया गया हो (CrPC Section 164)।
क्या पुलिस हर केस में रिमांड लेती है?
नहीं। पुलिस रिमांड केवल उन्हीं मामलों में ली जाती है जहां:
आरोपी से जांच में सहयोग की उम्मीद हो।
गिरफ्तारी के बाद सबूत इकट्ठा करना जरूरी हो।
जमानत का डर हो और आरोपी के फरार होने की संभावना हो।
हल्के मामलों में, जैसे झगड़ा, चोरी, नशा या ट्रैफिक उल्लंघन आदि में आमतौर पर पुलिस रिमांड नहीं ली जाती।
पुलिस के पास रखे जाने और जेल भेजे जाने का फर्क
बिंदु पुलिस रिमांड न्यायिक हिरासत
हिरासत में कौन रखता है? पुलिस जेल विभाग
अवधि सीमित (15 दिन या कम) 60–90 दिन तक
उद्देश्य पूछताछ, जांच जांच के बाद आरोप तय होना
आरोपी की सुरक्षा पुलिस निगरानी में जेल अधीक्षक के अधीन
दुरुपयोग की संभावना और न्यायिक निगरानी
कुछ मामलों में पुलिस रिमांड का दुरुपयोग कर सकती है, जैसे आरोपी को प्रताड़ित करना या बिना ठोस कारण हिरासत बढ़ाना।
इसलिए अदालत रिमांड देने से पहले पूरी रिपोर्ट मांगती है और आरोपी के वकील को सुनती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि रिमांड केवल “तथ्यात्मक और जांच संबंधी आवश्यकता” के आधार पर ही दी जानी चाहिए।

पुलिस रिमांड में आरोपी के अधिकारों की सुरक्षा
पुलिस रिमांड एक शक्तिशाली लेकिन जिम्मेदार कानूनी प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य न्याय को सहायता देना है — न कि किसी आरोपी को सजा देना। रिमांड तभी दी जाती है जब जांच के लिए आवश्यक हो और उसे मजिस्ट्रेट की मंजूरी मिल जाए। आरोपी के पास भी अधिकार होते हैं, जिन्हें सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है।
एक मजबूत लोकतंत्र में, पुलिस की ताकत और आरोपी के अधिकार — दोनों का संतुलन जरूरी होता है। पुलिस रिमांड इसी संतुलन की एक मिसाल है।