द्वारका कोर्ट कांड: नई दिल्ली, भारत की अदालतों में न्याय की गरिमा और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सर्वोच्च माना जाता है।

लेकिन दिल्ली की एक अदालत में हाल ही में जो घटना सामने आई, उसने न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किए बल्कि महिला जजों की सुरक्षा और कार्यस्थल पर उनके प्रति होने वाले उत्पीड़न के गंभीर पहलू को भी उजागर कर दिया।
यह मामला है M/s Vintage Credit and Leasing Pvt. Ltd. बनाम राज सिंह, जो वर्ष 2019 से दिल्ली की द्वारका कोर्ट में लंबित था। यह एक साधारण चेक बाउंस केस था, जिसकी सुनवाई न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (NI Act)-05, दक्षिण-पश्चिम जिला, द्वारका कोर्ट की मजिस्ट्रेट शिवांगी मंगला कर रही थीं। लेकिन फैसला सुनाए जाने के दिन यानी 2 अप्रैल 2025 को कोर्ट में जो घटित हुआ, उसने पूरे न्यायिक तंत्र को झकझोर कर रख दिया।
टीपू सुल्तान
क्राइम एपिसोड
द्वारका कोर्ट कांड: पांच साल पुराना केस जिसमें आरोपी को सुनाई गई सजा
दरअसल, M/s Vintage Credit and Leasing Pvt. Ltd. ने राज सिंह नामक व्यक्ति के खिलाफ धनादेश प्रतितोष अधिनियम, 1881 की धारा 138 के तहत मुकदमा दर्ज कराया था। राज सिंह ने कंपनी को चेक दिया था, जो बाद में बाउंस हो गया। कंपनी ने कानूनी कार्रवाई की, और केस करीब पांच साल तक चला।
2 अप्रैल 2025 को अदालत ने आरोपी राज सिंह को दोषी ठहराया। यह फैसला सुनाए जाने के बाद कोर्टरूम में एक अप्रत्याशित और अवांछनीय घटना घटी।
कोर्टरूम में हंगामा और महिला जज को खुलेआम धमकी
फैसला सुनाते ही आरोपी राज सिंह ने अपने गुस्से का सार्वजनिक प्रदर्शन शुरू कर दिया। जज के आदेश की कॉपी सामने आने के बाद कोर्टरूम में उसने गंभीर क्रोध प्रकट किया और खुले कोर्ट में ही अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल करते हुए मजिस्ट्रेट शिवांगी मंगला को गालियां दीं।
इतना ही नहीं — आदेश में दर्ज विवरण के अनुसार, आरोपी ने अपनी माता का नाम लेकर मजिस्ट्रेट के प्रति अशोभनीय टिप्पणी की और मजिस्ट्रेट की ओर कोई वस्तु फेंकने का भी प्रयास किया।
वहीं, इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला पहलू यह रहा कि राज सिंह के अधिवक्ता श्री अतुल कुमार भी इस शर्मनाक हरकत में शामिल हो गए। आदेश के मुताबिक, राज सिंह ने अपने वकील से कहा कि “कुछ भी करो, फैसला अपने पक्ष में कराओ।” इस पर अधिवक्ता ने भी मजिस्ट्रेट को धमकियां देनी शुरू कर दीं।
धमकी में कहा गया —
“तू है क्या चीज़… बाहर मिल, देखते हैं कैसे ज़िंदा घर जाती है।”
इसके अलावा आरोपी और उसके वकील ने मजिस्ट्रेट को डराने-धमकाने का सिलसिला जारी रखा। उन्होंने कहा कि अगर फैसला बदला नहीं गया, तो वे झूठे आरोपों में फंसा देंगे और मजिस्ट्रेट को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर देंगे।
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मजिस्ट्रेट का साहस और न्याय की रक्षा का संकल्प
इस शर्मनाक घटना के बावजूद मजिस्ट्रेट शिवांगी मंगला ने साहस दिखाते हुए अपना कर्तव्य निभाया। उन्होंने अपने आदेश में लिखा —
“फिर भी, मैं सभी बाधाओं के बावजूद न्याय के पक्ष में आवश्यक कार्य करती रहूंगी।”
उनका यह बयान भारतीय न्यायपालिका में महिलाओं की भूमिका, हिम्मत और ज़िम्मेदारी का सशक्त उदाहरण है।
उन्होंने यह भी कहा कि वह इस उत्पीड़न और धमकियों को लेकर राष्ट्रीय महिला आयोग और दिल्ली उच्च न्यायालय प्रशासन के समक्ष उपयुक्त कार्यवाही के लिए प्रेषित करेंगी, ताकि ऐसे असामाजिक और न्याय विरोधी तत्वों पर कार्रवाई हो सके।
आरोपी वकील को कारण बताओ नोटिस और आपराधिक अवमानना की चेतावनी
कोर्ट ने इस कृत्य को अदालत की अवमानना करार देते हुए आरोपी के वकील श्री अतुल कुमार को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। उनसे पूछा गया है कि क्यों न उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए।
साथ ही आरोपी राज सिंह को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 437A के तहत जमानत बंधपत्र दाखिल करने का आदेश भी दिया गया।
क्या है NI Act की धारा 138 और उसका महत्व
धनादेश प्रतितोष अधिनियम (Negotiable Instruments Act) की धारा 138 भारत में चेक बाउंस होने की स्थिति में कानूनी कार्रवाई की अनुमति देती है। इसके तहत अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी को बाउंस चेक देता है, तो उसके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जा सकता है और दोष सिद्ध होने पर दो साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
भारत में हजारों ऐसे केस कोर्टों में लंबित हैं, जिनमें लोगों को आर्थिक नुकसान और मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
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महिला न्यायाधीशों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल
इस घटना ने एक बार फिर अदालतों में महिला जजों की सुरक्षा और उनके प्रति बढ़ती हिंसा की प्रवृत्ति पर चिंता जताई है। न्यायालय में किसी भी जज, खासतौर पर महिला मजिस्ट्रेट के साथ इस तरह की अशोभनीय और आपराधिक हरकत न केवल न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाती है बल्कि पूरे समाज में एक गंभीर संदेश देती है।
दिल्ली में पहले भी वकीलों द्वारा जजों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं सामने आई हैं। इस केस ने न्यायिक तंत्र को एक बार फिर चेतावनी दी है कि अदालतों में काम करने वाले जज, खासकर महिलाएं, कितनी असुरक्षित हैं।
न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने की ज़रूरत
अदालतें लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मानी जाती हैं। वहां न्यायाधीश अपने विवेक और सबूतों के आधार पर निष्पक्ष फैसले सुनाते हैं। इस तरह की घटनाएं न्यायिक तंत्र को डराने और प्रभावित करने की कोशिश होती हैं।
इसलिए जरूरी है कि इस मामले में सख्त और त्वरित कार्रवाई हो। आरोपी और उसके अधिवक्ता पर कड़ी सजा दी जाए, ताकि भविष्य में कोई व्यक्ति या वकील अदालत में न्यायाधीश को धमकाने की हिम्मत न कर सके।
भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए गंभीर चेतावनी
दिल्ली की द्वारका कोर्ट में घटी यह घटना भारतीय न्यायिक व्यवस्था के लिए एक गंभीर चेतावनी है। महिला जजों की सुरक्षा को मजबूत किया जाना चाहिए और अदालत परिसर में निगरानी और सुरक्षा व्यवस्था को और अधिक सख्त किया जाना चाहिए।

मजिस्ट्रेट शिवांगी मंगला का साहस और अपने कर्तव्य के प्रति समर्पण प्रशंसनीय है।
इस घटना की जितनी निंदा की जाए, कम है। अब देखना यह है कि राष्ट्रीय महिला आयोग और दिल्ली उच्च न्यायालय इस पर क्या सख्त कदम उठाते हैं।